“6, 7, 8वीं में सिर्फ 5 बच्चे… पर शिक्षक पूरे 3, सरकारी स्कूलों की हालत पर सवाल”
सवाल ये है कि जब छात्र ही नहीं, तो फिर 3-3 शिक्षकों की तैनाती का औचित्य क्या है?

सीहोर, एमपी विश्वास न्यूज, राजेश माँझी
सीहोर। सीहोर जनपद के संकुल केंद्र उलझावन के अंतर्गत आने वाले शासकीय माध्यमिक शाला शिकारपुर में मात्र 5 छात्र दर्ज हैं। उन 5 छात्रों की पढ़ाई के लिए तीन,तीन शिक्षक तैनात है। आरटीई के नियम अनुसार 20 बच्चों पर एक शिक्षक तैनात रहना अनिवार्य हैं। लेकिन यहां आरटीई के नियम को ताक में रखकर मात्र 5 बच्चों पर 3 शिक्षकों की पदस्थापना है। यह 5 बच्चे भी सिर्फ दर्ज हैं कक्षा में सिर्फ कभी-कभी एक दो बच्चे आते हैं नहीं तो अधिकतर समय पूरी कक्षा खाली पड़ी रहती है।
एमपी विश्वास न्यूज़ की टीम ने जब पड़ताल की तो शासकीय माध्यमिक शाला शिकारपुर में एक भी बच्चा कक्षा में मौजूद नहीं मिला।
3 शिक्षकों में से सिर्फ प्रधानाध्यापक ही स्कूल में मौजूद मिले।
खाली क्लास में अकेले प्रधानाध्यापक जगदीश प्रसाद छाया बैठे हुए मिले। इस प्रकार स्कूलों की तस्वीर देखकर शिक्षा विभाग पर बड़ा सवाल खड़ा होता है। संसाधनों और वेतन पर लाखों रुपये खर्च होने के बावजूद न तो बच्चों की संख्या बढ़ रही है और न ही गुणवत्ता में सुधार दिख रहा है। वही स्कूल की बिल्डिंग भी इतनी जर्जर हो रही है की दीवार में नीचे से आरपार दिख रहा है। जिससे हमेशा बिल्डिंग गिरने की भी आशंका बनी रहती है।

बच्चे तो स्कूल कभी कबार आते है, लेकिन मध्यान्ह भोजन तो प्रीतिदिन् बन रहा है, यह भी एक बडा सवाल उठता है?
आख़िर इन अव्यवस्थाओं का जि़म्मेदार कौन है ,शासन,समाज,शिक्षा विभाग,आरटीआई के नियम के शिक्षक या फिर अभिभावक
यह एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है ?
ग्रामीणों का कहना है कि अभिभावक अब अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजना पसंद कर रहे हैं, क्योंकि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई से ज्यादा समय खानापूर्ति में निकल जाता है। विभाग की चुप्पी और निरीक्षण की कमी से यह हालात वर्षों से बने हुए हैं। सवाल ये है कि जब छात्र ही नहीं, तो फिर 3-3शिक्षकों की तैनाती का औचित्य क्या है? और कब तक सरकारी खज़ाने पर ये बोझ यूं ही चलता रहेगा? का कहना है कि अभिभावक अब अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजना पसंद कर रहे हैं, क्योंकि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई से ज्यादा समय खानापूर्ति में निकल जाता है। विभाग की चुप्पी और निरीक्षण की कमी से यह हालात वर्षों से बने हुए हैं। सवाल ये है कि जब छात्र ही नहीं, तो फिर 3-3शिक्षकों की तैनाती का औचित्य क्या है? और कब तक सरकारी खज़ाने पर ये बोझ यूं ही चलता रहेगा?